लेखक : धीराविट पी. नात्थागार्न ; अनुवाद : आ. चारुमति रामदास लेखक : धीराविट पी. नात्थागार्न ; अनुवाद : आ. चारुमति रामदास
चलती फिरूँ...उड़ती फिरूँ ....मस्त बनके पंछी में गगन में ...आफताब को अपना बनाऊं में रोको न मुझे छू लूँ... चलती फिरूँ...उड़ती फिरूँ ....मस्त बनके पंछी में गगन में ...आफताब को अपना बनाऊं मे...
हुआ महसूस करते हुए बुक स्टोर से बाहर निकल आया। हुआ महसूस करते हुए बुक स्टोर से बाहर निकल आया।
फॉरेस्ट विभाग निवेदन किया कि जंगल के किनारे किसी को झोपड़ी या घर बनाकर नहीं रहना है। फॉरेस्ट विभाग निवेदन किया कि जंगल के किनारे किसी को झोपड़ी या घर बनाकर नहीं रहना...
ये कैसा रिश्ता मेरा है तुझसे की जो टूटता ही नहीं ये कैसा रिश्ता मेरा है तुझसे की जो टूटता ही नहीं
मेरी हिंदी उन्हें काफी अच्छी लगी थी, मुंबई की आम बोलचाल हिंदी की अपेक्षा गृहस्वामी बोले-तुम पढ़ाई क्... मेरी हिंदी उन्हें काफी अच्छी लगी थी, मुंबई की आम बोलचाल हिंदी की अपेक्षा गृहस्वा...